सोमवार, 20 दिसंबर 2010

सुधा सिंह जी! रुक जाइए ना.

हमारे उत्तर प्रदेश की एक एथलीट हैं - सुधा सिंह. आज कल बेचारी थोड़ी परेशान हैं. कारण : उनको एक खेल समारोह में बुलाया गया और उचित सम्मान नहीं मिला. अब पूरा घटनाक्रम थोड़ा विस्तार से वर्णित करते हैं.
सबसे पहले ये बताते हैं कि आखिर सुधा सिंह हैं कौन? ये भारत की एक महिला खिलाडी हैं, जाहिर सी बात है कि इनका भी जन्म एक अमीर घर में नहीं हुआ होगा, परन्तु जन्मजात प्रतिभा की धनी इस महिला खिलाड़ी ने एशियाई खेलों में 3000 मीटर बाधादौड़ (steeplechase) प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक जीत देश और हम सब का मस्तक ऊंचा कर दिया था. बस इतनी सी बात थी, पर इतने से ही उन्होंने ये उम्मीद कर ली कि इनको अब सम्मान मिलना शुरू हो जाएगा. अब आप ही बताइए, ये भी भला कोई बात हुई, इस देश में खिलाडियों को कभी इज्जत और सम्मान मिला है क्या? यकीन न आये तो याद कीजिये कि देश में ही आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किसने किया था. मुझे उम्मीद है कि आपके मन में सबसे पहला नाम कलमाड़ी जी का ही आया होगा. है ना?
तो, एक खेल प्रतियोगिता 'महिला ओपन क्रास कंट्री' में उनको विशिष्ट अतिथि और खेल मंत्री जी को बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया. अब किसी भी समर्पित खिलाड़ी की तरह हमारी खिलाड़ी महोदया समय पर पहुँच गयीं और उनको एक बैज और गुलदस्ता भी पकड़ा दिया गया. इसके बाद मंत्री जी का भी आगमन हुआ; सुधा जी ने उनसे मिलने की इच्छा जताई. सुधा जी को तो लगा कि उन्होंने तो पूरे एशिया को जीत लिया है, तो वो मंत्री जी से भी मिल सकती हैं. पर इस दौरान कुछ अजीब सा हुआ. सारे के सारे पदाधिकारी देश का नाम रोशन करने वाली इस धाविका को छोड़कर मंत्री जी की तरफ भाग लिए. अब इसमें उन बेचारों की भी क्या गलती? आखिर सुधा जी तो उनको किसी खेल संघ का अध्यक्ष तो बना नहीं सकती हैं और ना ही किसी विदेशी दौरे पर भेज सकती हैं. ये काम तो मंत्री जी ही करा सकते हैं ना. मैं तो कहता हूँ कि आखिर सुधा जी ने ये सोच भी कैसे लिया कि उन्होंने सोना जीतकर कोई कमाल कर दिया है. असली कमाल करने का हक तो इस देश में सिर्फ नेताओं को है. (अगर राडिया जी या दूसरी वाली नीरा जी भी बुरा माने, तो मैं उनका नाम भी जोड़े देता हूँ).
बस इतनी सी बात थी और सुधा जी नाराज हो गयीं और वहां से चली गयीं. उनको जाते सबने देखा, पर किसी ने रोका भी नहीं, ना मंत्री ने और ना मंत्री जी की प्रजा ने. वैसे भाई उन्होंने भी सोचा होगा कि जितना सम्मान करना था, कर तो दिया, अब जाने ही देते हैं, वरना फालतू में गेट तक छोड़ना पड़ता.
आगे सुधा जी ने कह दिया कि वो अब उत्तर प्रदेश की ओर से नहीं खेलेंगी. तो आखिर कहाँ जायेंगी मैडम? आपको क्या लगता है कि बाकी राज्यों में मंत्री नहीं होते और वहां पर आपको कोई ज्यादा सम्मान मिल जाएगा. वहां पर भी आपको एक गुलदस्ते से ज्यादा कुछ मिलने से रहा. और वहां भी लोग आपको छोड़कर मंत्री के पीछे ही भागेंगे, चाहे आप एशियाई खेल तो क्या ओलम्पिक का स्वर्ण ही क्यूँ ना जीत लें. भाई इस देश की परंपरा तो कुछ ऐसी ही है. तो हम तो यही चाहेंगे कि कृपया अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करें और प्रदेश में ही रहें क्योंकि आप और अन्य सभी खिलाड़ी हम जैसे आम लोगों के दिल से मिल रहे सम्मान के हक़दार हैं, इन मंत्रियों या इनके संतरियों से मुलाकात के नहीं. तो ऐसे ही खेलती रहिये और देश का और हम सबका नाम ऊँचा करती रहिये.
(चित्र साभार -   www.rediff.com/sports)