बुधवार, 12 अगस्त 2009

EUMA

पिछले कुछ दिनों से भारत और अमेरिका के संबंधों को नया आयाम देने वाला तथाकथित EUMA (End-Use Monitoring Agreement) के बारे में काफी कुछ कहा लिखा गया। संसद भी अछूता नही रहा। सरकार और विपक्ष के बीच में कुछ तीखी नोक-झोंको का गवाह बना मानसून सत्र
सरकार की लाख सफाई के बावजूद विपक्ष संतुष्ट नही हुआजहाँ सरकार इसे एक मील का पत्थर बताती रही, वहीं विपक्ष ने इसे देश की संप्रभुता पर प्रश्नचिह्न लगाने वाला समझौता करार दिया। प्रथम दृष्टया देखा जाए तो विपक्ष के सारे आरोप सही नजर आते हैं।
करार की एक शर्त के अनुसार अमेरिका को यह अधिकार रहेगा कि भारत द्वारा ख़रीदे गये किसी भी अमेरिकी हथियार, या अन्य कोई भी सैन्य साजो-सामान की अमेरिका कभी भी जांच कर सकेगा। राहत की बात बस इतनी ही है, कि करार के अनुसार उस जांच के लिए दिन और जगह के निर्धारण का अधिकार भारत को होगा। यह भारत द्वारा किसी भी देश के साथ किया गया अपनी तरह का पहला करार है, जहाँ हम बाध्य होंगे अपने हथियारों को किसी विदेशी नागरिक(! - मतलब CIA, Pentagon officers etc.) के द्वारा जांच करवाने के लिए। इतना ही नही, भारत को सभी अमेरिकी साजो-सामान का रिकॉर्ड भी रखना होगा, और वो भी अमरीकी जांच के दायरे में आएगा।
भारत को सैन्य आपूर्ति करने वाले किसी भी अन्य देश के साथ ऐसी कोई भी शर्त नही है। फिर वर्तमान भारत सरकार के अमेरिका प्रेम कि कोई वजह समझ में नही आती है। वैसे भी हमने एक ऐसे देश को यह अधिकार दे डाला है, जिसका एक प्रमुख सहयोगी वह देश है जो भारत के साथ ३ बार युध्द कर चुका है और हज़ार साल तक लड़ने का दावा करता है.
और जहाँ तक रही जगह और समय का निर्धारण करने के अधिकार कि बात तो व्यवहार में ऐसा कितना मुश्किल है इसको आसानी से समझा जा सकता है। अगर कोई अमेरिकी राडार सिस्टम हमारी किसी पनडुब्बी या नौसैनिक पोत में संलग्न हो, इस अवस्था में जांच बस दो ही तरीके से हो सकती हैपहला, कि हम अमेरिकी अधिकरियों को अपने पोत में प्रवेश का अधिकार दें या फिर पनडुब्बी या नौसैनिक पोत से राडार सिस्टम को अलग करके जांच कि प्रस्तावित जगह पर ले जाया जाय। दोनों ही स्थितियां हमारे अनुकूल नहीं हैं। और यह हमारी संप्रभुता पर एक किस्म का हमला होगा।
यही नही करार के अनुसार भारत को यह अधिकार भी नही रहेगा, कि वह अमेरिकी हथियारों में किसी भी प्रकार का फेरबदल कर सके। मतलब यह है कि हम अमेरिकी सैन्य सामान के कंप्यूटर प्रोग्राम्स भी नही बदल सकते हैं, कंप्यूटर कि जानकारी रखने वाला कोई भी शख्स आसानी से यह बता सकता है, कि इसका मतलब है हम अपने ख़ुद के ख़रीदे गए हथियार को प्रोग्राम बदल कर और अधिक सुरक्षित नही कर सकते हैं।
सरकार अभी भी अमेरिका से मैत्री का राग अलाप रही है, जबकि कुछ ही दिन पहले परमाणु उर्जा कि राह में अमेरिका G-8 बैठक में कांटें बो चुका है।
सरकार को चाहिए कि तत्काल प्रभाव से इस समझौते को रद्द करे, वरना यह एक ऐसी गलती होगी, जो हमें बरसों तक सालती रहेगी।

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